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— सपनों क्या करें क्या —-
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सपने देख देख के,
हम तो थक गए,
एक चेहरा हटता नहीं,
न जाने किस कोशिश में।
सुबुकती हैं ये यादें,
तुम्हें क्या पता,
भूल के भी भूल न पाए,
ये हमारी सजा है।
सपना भी अब धुंधला-धुंधला,
क्यूं लागे है आज,
उनकी एक खुशी में न जाने,
हम अपनी खुशी ढूंढने लगे।
हमें तो आदत है,
ऐसे जीने की।
सपनों क्या करें क्या,
चुभते हैं,
यूं ही कभी।